यह शीर्षक आपको अटपटा लगा क्या? शिक्षक दिवस पर हम सभी अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं क्योंकि हमारे जीवन को आकार और आधार देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण होता है. लेकिन शिक्षक समुदाय का एक कुरूप पहलू भी है जिस पर बात की जानी चाहिए. जैसे हम डॉक्टर को भगवान का अवतार मानते हैं लेकिन असल में अधिकतर डॉक्टर लालची और संवेदनहीन व्यापारी होते हैं. वैसे ही शिक्षकों का एक बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्ट होता है.
आर्थिक भ्रष्टाचार के अलावा यह भ्रष्टाचार कई अन्य हानिकारक रूपों में प्रकट होता है, जैसे कि
1. समय पर कक्षा में न जाना
2. यूट्यूब, विकिपीडिया जैसे साधनों से संक्षेप में नोट्स तैयार करना
3. नेट से प्रश्नपत्र डाउनलोड कर लेना
4. सेमिनार/कॉन्फ्रेंस में चुराए हुए या निचले दर्जे के शोध पत्र प्रस्तुत करना, केवल प्रमाण पत्र के लिए. वेबिनार में लॉगिन करके झूठी हाज़री लगाना.
5. अपने शोधार्थी छात्रों के शोध पत्रों पर अपना नाम छपवाना
6. सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल प्रतिस्पर्धा, इत्यादि में अपनी झूठी व्यस्तता दिखाना और कक्षाएँ ना लेना
7. ठंड के दिनों में बाहर धूप का मज़ा लेना और यदि छात्रों की संख्या कम हो तो उन्हें बिना कक्षा लगाए हाज़री दे देना
8. गेस्ट लेक्चर के नाम पर छुट्टी मनाना
ऐसे बहुत से और ढंग हैं भ्रष्टाचार के जो शिक्षक अपनाते हैं.
चुनिंदा शिक्षक होते हैं जो अपना कार्य निष्ठा, लगन, और श्रम से करते हैं. और बहुत कम भाग्यशाली छात्र होते हैं जिन्हें ऐसे शिक्षक मिलते हैं. मैं उन विद्यार्थियों में से हूँ जिन्हें कुछ ऐसे शिक्षक मिले.
उनमें से कुछ विशेष प्रिय शिक्षक हैं: प्रोफेसर उमाशंकर चौबे, प्रोफेसर मोहनी चक्रनारायण, प्रोफेसर राजेश शर्मा, श्रीमती ओमना कुट्टी, श्री ज्ञानेंद्र यादव. ये वे शिक्षक हैं जिन्हें शिक्षण, अपने विषय, और अपने विद्यार्थियों से प्रेम है. और इन्होंने हर संभव प्रयास किया है अपना ज्ञान उन तक पहुँचाने के लिए. मैं आज भी इन शिक्षकों के मूल्यों पर जी रहा हूँ. इनका सदैव ऋणी रहूँगा.